ग़ज़ल
दिल में हैं ग़म,तों पलक तले मोती क्यों है ?
पीड़ ए उलफ़त, सागर की तरह दिखती क्यों है ?
गैरों से जो इक दिन , हो जाती है मोहब्बत,
यारों अपनो से फिर, नफरत होती क्यों है ?
कांटे तो कांटे हैं , कांटों से डर लाज़िम,
फूलों की छो से मेरी नज़र,डरती क्यों है ?
ना मैं सागर, ना मैं रेगिस्तान कोई,
मेरी और नदी बन कर वो, बहती क्यों है ?
ख़ुद की, पहचान भुला कर अब, पूछे " चौहान"
ए दिल मेरी किस्मत, इतनी रोती क्यों है ?
"चौहान"
दिल में हैं ग़म,तों पलक तले मोती क्यों है ?
पीड़ ए उलफ़त, सागर की तरह दिखती क्यों है ?
गैरों से जो इक दिन , हो जाती है मोहब्बत,
यारों अपनो से फिर, नफरत होती क्यों है ?
कांटे तो कांटे हैं , कांटों से डर लाज़िम,
फूलों की छो से मेरी नज़र,डरती क्यों है ?
ना मैं सागर, ना मैं रेगिस्तान कोई,
मेरी और नदी बन कर वो, बहती क्यों है ?
ख़ुद की, पहचान भुला कर अब, पूछे " चौहान"
ए दिल मेरी किस्मत, इतनी रोती क्यों है ?
"चौहान"
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