ग़ज़ल
नज़रों से नज़रों की शरारत तो देखो ।
आंखों में उलफत की इनायत तो देखो ।
ना देखो मेरी दिल्लगी ए हमदम,
धडकन में चाहत की कयामत तो देखो ।
अपनों में है बेगानगी बेगानों सी,
महफिल में महफिल की लियाकत तो देखो ।
यूं ही ना कहे कोई, नदां’ दिल को पागल ,
दिल के पागलपन की हकीकत तो देखो ।
सागर से होना चाहता है अब कतरा ,
"चौहान" मेरे दिल की जरूरत तो देखॊं ।
"चौहान"
नज़रों से नज़रों की शरारत तो देखो ।
आंखों में उलफत की इनायत तो देखो ।
ना देखो मेरी दिल्लगी ए हमदम,
धडकन में चाहत की कयामत तो देखो ।
अपनों में है बेगानगी बेगानों सी,
महफिल में महफिल की लियाकत तो देखो ।
यूं ही ना कहे कोई, नदां’ दिल को पागल ,
दिल के पागलपन की हकीकत तो देखो ।
सागर से होना चाहता है अब कतरा ,
"चौहान" मेरे दिल की जरूरत तो देखॊं ।
"चौहान"
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