माचिस की जलती तीली सा इक अहसास
रोज़ जलाता है मुझे
जलती उम्मीदें
जलते खाब
उठती लपटें
दिखाई देती हैं मुझे
फिर क्योंं
कुछ राख नहीं होता
क्योंं फिर
मैं फ़ना नहीं होता
माचिस की जलती तीली सा इक अहसास
रोज़ आग लगाता है मुझे
शायद ! कुंदन बनाता है मुझे
माचिस की तीली सा जलता इक अहसास।
"चौहान"
रोज़ जलाता है मुझे
जलती उम्मीदें
जलते खाब
उठती लपटें
दिखाई देती हैं मुझे
फिर क्योंं
कुछ राख नहीं होता
क्योंं फिर
मैं फ़ना नहीं होता
माचिस की जलती तीली सा इक अहसास
रोज़ आग लगाता है मुझे
शायद ! कुंदन बनाता है मुझे
माचिस की तीली सा जलता इक अहसास।
"चौहान"
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