नज़र-ए-अदा हुआ के नियाज़-ए-क़ज़ा हुआ
पहलू में एक दिल था ख़ुदा जाने क्या हुआ
पहलू में एक दिल था ख़ुदा जाने क्या हुआ
अपनी हदूद से ना बढे़ इश्क़ में कोई
क़तरा हुबाब बन के जो उभरा फ़ना हुआ
क़तरा हुबाब बन के जो उभरा फ़ना हुआ
आओ 'असीर' अब तो यही मशग़ला सही
एक रोये और दूसरा पूछे के क्या हुआ
एक रोये और दूसरा पूछे के क्या हुआ
(नज़र-ए-अदा = प्रियतम की अदाओं की भेंट), (नियाज़-ए-क़ज़ा = मौत की इच्छा/ कामना)
(हदूद = मर्यादाओं, सीमाओं), (हुबाब = पानी का बुलबुला), (फ़ना = बर्बादी, तबाही, मृत्यु)
(मशगला = शगल करना, दिल बहलाव)
(कॉपी)
(हदूद = मर्यादाओं, सीमाओं), (हुबाब = पानी का बुलबुला), (फ़ना = बर्बादी, तबाही, मृत्यु)
(मशगला = शगल करना, दिल बहलाव)
(कॉपी)
No comments:
Post a Comment