ग़ज़लइश्क प्याला पीता हूं ।मस्ती में ही रहता हूं ।दर्द मिला है बिरहन का,मैं कहता हूं सहता हूं ।कोई ठग चोर नहीं मैं दिल दे कर दिल लेता हूं ।कतरा दरया सागर मैं,तेरी मेहर से होता हूं ।लछ्छा हूं मैं उलफत का,माँ कुछ कहे तो कहता हूं ।"चौहान"
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